IGNOU BHDLA-135 असाइनमेंट 2024: सभी प्रश्नों के सही उत्तर और समाधान

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अगर आप IGNOU BHDLA-135 कोर्स के लिए असाइनमेंट 2024 के उत्तर ढूंढ रहे हैं, तो आपने सही जगह पर क्लिक किया है। इस पोस्ट में, हमने आपके लिए असाइनमेंट के सभी प्रश्नों के सही उत्तर और समाधान हिंदी में प्रस्तुत किए हैं। हमारे उत्तर को ध्यानपूर्वक पढ़ें और अपनी असाइनमेंट को सही ढंग से पूरा करने के लिए इनका उपयोग करें।

Program Code: BAG

Session : July-2024 and July-2025

Last Date of Submission:

For July 2024 Session31 March 2025
For January 2025 Session30 September 2025
पाठ्यक्रम कोड : BHDLA-135/BAG

सत्रीय कार्य कोड : BHDLA-135/TMA/2024-25

कुल अंक : 100

नोट: सभी प्रश्न अनिवार्य हैं | दस अंक के प्रश्नों के उत्तर 500 शब्दों में तथा पांच अंक के प्रश्नों के उत्तर लगभग 250 शब्दों में दीजिए| |

भाग – I

1.) देवनागरी लिपि में वर्णों के मानक रूप तथा लेखन की कठिनाईयों पर विचार कीजिए | 10

उत्तर : देवनागरी लिपि, जो भारतीय उपमहाद्वीप की प्रमुख लिपियों में से एक है, संस्कृत, हिंदी, मराठी, नेपाली और कई अन्य भाषाओं की लेखन प्रणाली के रूप में उपयोग होती है। इस लिपि की मानक रूपरेखा और लेखन की कठिनाइयाँ विभिन्न दृष्टिकोणों से देखी जा सकती हैं।

वर्णों का मानक रूप

देवनागरी लिपि में वर्णमाला की संरचना का आधार 14 स्वर (स्वर) और 33 व्यंजन (अस्वर) हैं। स्वर और व्यंजन की मानक रूपरेखा इस प्रकार है:

  1. स्वर: देवनागरी में स्वर अज्ञात चिह्नों के साथ लिखे जाते हैं। ये स्वर स्वतंत्र रूप से लिखे जाते हैं और ये स्वरांश के रूप में शब्दों के बीच स्थान लेते हैं। स्वर चिह्नों में ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’ शामिल हैं।
  2. व्यंजन: व्यंजन, स्वर के बिना, स्वतंत्र रूप से पूर्ण ध्वनि नहीं बनाते। वे स्वर के साथ मिलकर एक संपूर्ण ध्वनि का निर्माण करते हैं। व्यंजन जैसे ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’, ‘च’, ‘छ’, ‘ज’, ‘झ’, ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’, ‘त’, ‘थ’, ‘द’, ‘ध’, ‘न’, ‘प’, ‘फ’, ‘ब’, ‘भ’, ‘म’, ‘य’, ‘र’, ‘ल’, ‘व’, ‘श’, ‘ष’, ‘स’, ‘ह’ शामिल हैं।

लेखन की कठिनाइयाँ

देवनागरी लिपि में लेखन की कुछ कठिनाइयाँ हैं जो इसे अन्य लिपियों की तुलना में चुनौतीपूर्ण बना सकती हैं:

  1. मिश्रण स्वर: स्वर और व्यंजन के संयोजन से नए वर्णों का निर्माण होता है। उदाहरण के लिए, ‘क’ और ‘ा’ मिलकर ‘का’ बनाते हैं। यह संयोजन लेखन में सटीकता की मांग करता है, क्योंकि किसी भी छोटी गलती से शब्द का अर्थ बदल सकता है।
  2. शिरस्त्राण (शिरोरेखा): देवनागरी लिपि में वर्णों के ऊपर एक ‘शिरस्त्राण’ होती है, जो वर्णों को एक रेखा में जोड़ती है। इस शिरस्त्राण की सही स्थिति और आकार का पालन न करने से शब्दों की पठनीयता प्रभावित हो सकती है।
  3. वर्णसंयोजन: जब दो या दो से अधिक व्यंजन एक साथ आते हैं, तो वे संयुक्त वर्ण बनाते हैं। इन संयुक्त वर्णों के सही लेखन में विशेष ध्यान देना होता है। उदाहरण के लिए, ‘ज्ञ’ और ‘क्ष’ जैसे संयुक्त वर्ण अलग-अलग व्यंजनों की जटिल संरचना को दर्शाते हैं।
  4. लिखाई की दिशा: देवनागरी लिपि बाएँ से दाएँ लिखी जाती है, लेकिन किसी भी गलत दिशा में लिखने से शब्दों की संपूर्णता में समस्या आ सकती है। इससे लेखन की संरेखण में कठिनाई हो सकती है।
  5. फॉन्ट और टाइपिंग समस्याएँ: डिजिटल माध्यम में देवनागरी लिपि की टाइपिंग और फॉन्ट की समस्याएँ भी हो सकती हैं। कुछ फॉन्ट्स में सभी वर्ण सही ढंग से प्रदर्शित नहीं होते या टाइपिंग में वर्णों की स्थिति सही नहीं आती।
  6. समान ध्वनियों का भिन्न रूप: कुछ ध्वनियाँ जैसे ‘श’, ‘ष’, और ‘स’ की समान ध्वनि होती है, लेकिन उनके लेखन में भिन्न रूप होते हैं। इस भिन्नता को समझना और सही रूप में लिखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

अंततः, देवनागरी लिपि की लेखन प्रणाली अपनी जटिलताओं और मानक रूपरेखा के कारण एक विशिष्ट और सुंदर लिपि है। सही लेखन और समझ के लिए नियमित अभ्यास और ज्ञान की आवश्यकता होती है।

2.) हिंदी वर्णमाला को उच्चारण की विशेषताओ के आधार पर विशलेषित कीजिए | 10

उत्तर : हिंदी वर्णमाला का उच्चारण की विशेषताओं के आधार पर विश्लेषण

हिंदी वर्णमाला की संरचना और उच्चारण की विशेषताएँ भाषा की पहचान और स्पष्टता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। हिंदी वर्णमाला का विश्लेषण उच्चारण की दृष्टि से वर्णों को वर्गीकृत करने से भाषा की ध्वनियों को समझना और सही तरीके से उपयोग करना आसान होता है। हिंदी वर्णमाला में कुल 13 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं, जिन्हें उच्चारण की विशेषताओं के आधार पर विभाजित किया जा सकता है।

स्वर (Vowels)

हिंदी में कुल 13 स्वर होते हैं, जो ध्वनियों की बुनियादी इकाइयाँ हैं। स्वर वोकल कॉर्ड्स द्वारा उत्पन्न ध्वनियाँ होती हैं और ये किसी भी व्यंजन के बिना स्वतंत्र रूप से बोली जाती हैं। स्वर के उच्चारण की विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  1. मूल स्वर (Basic Vowels): हिंदी के मूल स्वर हैं ‘अ’, ‘आ’, ‘इ’, ‘ई’, ‘उ’, ‘ऊ’, ‘ए’, ‘ऐ’, ‘ओ’, ‘औ’। ये स्वर विशेष ध्वनि स्थानों और आकारों के आधार पर वर्गीकृत होते हैं:
  • अ: मध्यवर्ती स्वर, जो बिना किसी विशेष मुखर स्थान के उच्चारित होता है।
  • आ: ‘अ’ का लम्बा रूप, उच्चारण में अधिक मुखर स्थान और लंबाई।
  • इ, ई: उच्च और निम्न मुखर स्थान पर उच्चारित होते हैं, जहाँ ‘इ’ छोटा और ‘ई’ लंबा स्वर है।
  • उ, ऊ: गहरे मुखर स्थान पर उच्चारित होते हैं, जहाँ ‘उ’ छोटा और ‘ऊ’ लंबा स्वर है।
  • ए, ऐ, ओ, औ: ये स्वर भी मुखर स्थान और ध्वनि के आधार पर विभाजित होते हैं, जैसे ‘ए’ और ‘ऐ’ मध्यम मुखर स्थान पर और ‘ओ’ और ‘औ’ गहरे मुखर स्थान पर।

व्यंजन (Consonants)

हिंदी वर्णमाला में 33 व्यंजन होते हैं, जिन्हें उच्चारण की विशेषताओं के आधार पर निम्नलिखित वर्गों में बाँटा जा सकता है:

  1. मुख्य स्थान (Place of Articulation): व्यंजन उनके उच्चारण स्थान के आधार पर वर्गीकृत होते हैं:
  • अस्वर वर्ण (Stops): जैसे ‘क’, ‘ख’, ‘ग’, ‘घ’, ‘ट’, ‘ठ’, ‘ड’, ‘ढ’, ‘त’, ‘थ’, ‘द’, ‘ध’, और ‘प’, ‘फ’, ‘ब’, ‘भ’। ये ध्वनियाँ जब मौखिक गुहा में किसी भी स्थान पर रुकावट पैदा करती हैं, तब उच्चारित होती हैं।
  • अनुस्वार वर्ण (Nasal Sounds): जैसे ‘म’, ‘न’, ‘ङ’। ये ध्वनियाँ नाक के माध्यम से उच्चारित होती हैं।
  • लयकारी वर्ण (Fricatives): जैसे ‘स’, ‘श’, ‘ष’। ये ध्वनियाँ मौखिक गुहा में कुछ हद तक संकीर्ण स्थान से गुजरती हैं, जिससे घर्षण ध्वनि उत्पन्न होती है।
  • क्लास्प वर्ण (Liquids): जैसे ‘र’, ‘ल’। ये ध्वनियाँ मौखिक गुहा में फ्लेक्सिबल स्थान से उच्चारित होती हैं।
  1. उच्चारण की विधि (Manner of Articulation):
  • अवरोध ध्वनियाँ (Plosives): जैसे ‘क’, ‘ग’, जो एक पूर्ण अवरोध के साथ उच्चारित होती हैं और फिर एक विस्फोट के साथ निकलती हैं।
  • ध्वनिकार ध्वनियाँ (Fricatives): जैसे ‘स’, ‘ह’, जो हवा के संकीर्ण मार्ग से गुजरती हैं और ध्वनि उत्पन्न करती हैं।
  • क्लैस्प ध्वनियाँ (Affricates): जैसे ‘च’, ‘झ’, जो अवरोध और ध्वनिक ध्वनि का मिश्रण होती हैं।

उच्चारण की विशेषताएँ:

  1. मुखर स्थान (Place of Articulation): वर्णों के उच्चारण में मुखर स्थान का निर्धारण करता है कि ध्वनि कहाँ उत्पन्न होती है। जैसे, ‘क’ और ‘ग’ गले के पीछे से उच्चारित होते हैं, जबकि ‘त’ और ‘थ’ जिव्हा के सामने हिस्से से उच्चारित होते हैं।
  2. ध्वनि की उच्चारण विधि (Manner of Articulation): वर्णों की उच्चारण विधि यह निर्धारित करती है कि ध्वनि कैसे बनाई जाती है। जैसे, ‘स’ एक निरंतर ध्वनि है जो संकीर्ण स्थान से होकर गुजरती है, जबकि ‘ट’ एक पूर्ण अवरोध के साथ ध्वनि उत्पन्न करता है।
  3. ध्वनि की स्वरूपता (Voice Quality): व्यंजन ध्वनियों में स्वरूपता यह तय करती है कि ध्वनि स्वरयुक्त है या स्वरों की कमी है। जैसे, ‘ब’ और ‘भ’ स्वरयुक्त हैं, जबकि ‘प’ और ‘फ’ स्वरहीन हैं।

हिंदी वर्णमाला का उच्चारण की विशेषताओं के आधार पर विश्लेषण करने से भाषा की ध्वनि संरचना और वर्णों की प्रभावी पहचान में मदद मिलती है। यह विश्लेषण न केवल सही उच्चारण को समझने में सहायक होता है, बल्कि भाषा के सांस्कृतिक और लिपि अध्ययन में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

3.) प्रयोजनमूलक भाषा के क्या तात्पर्य हैं ? समझाइए | 10

उत्तर: प्रयोजनमूलक भाषा का तात्पर्य और उसकी विशेषताएँ

प्रयोजनमूलक भाषा (Functional Language) शब्दावली और संप्रेषण के संदर्भ में एक ऐसी भाषा को संदर्भित करती है जिसका उपयोग किसी विशेष उद्देश्य, कार्य, या प्रयोजन को पूरा करने के लिए किया जाता है। यह भाषा किसी कार्यात्मक, व्यावसायिक, या वैज्ञानिक संदर्भ में व्यवहारिक जरूरतों को पूरा करती है, न कि केवल साहित्यिक या कलात्मक उद्देश्यों के लिए। इसके अध्ययन और उपयोग में निम्नलिखित तात्पर्य और विशेषताएँ शामिल होती हैं:

1. उद्देश्य और कार्यक्षमता:

प्रयोजनमूलक भाषा का मुख्य तात्पर्य इस बात से है कि भाषा का उपयोग एक स्पष्ट उद्देश्य के लिए किया जाता है। इसका मतलब है कि यह भाषा केवल संवाद के लिए नहीं, बल्कि किसी विशेष कार्य, जैसे सूचना का आदान-प्रदान, निर्देश देना, या डेटा का विश्लेषण करने के लिए डिज़ाइन की जाती है। उदाहरण के लिए:

  • विज्ञान और तकनीक: गणितीय या वैज्ञानिक भाषा का उपयोग डेटा विश्लेषण, प्रयोगात्मक निष्कर्षों को साझा करने, और तकनीकी रिपोर्ट लिखने के लिए किया जाता है। यहाँ भाषा का उद्देश्य सही और सटीक जानकारी को प्रस्तुत करना होता है।
  • व्यापार और वाणिज्य: व्यापारिक संप्रेषण में प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग व्यापारिक प्रस्ताव, अनुबंध, और अन्य कानूनी दस्तावेज तैयार करने के लिए किया जाता है। इसमें भाषा की स्पष्टता और विधायिका पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।

2. संप्रेषण की स्पष्टता और सटीकता:

प्रयोजनमूलक भाषा में संप्रेषण की स्पष्टता और सटीकता अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। इसका मतलब है कि भाषा को इस तरह से संरचित किया जाता है कि उसका संदेश स्पष्ट और भ्रम रहित हो। यह विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जब सूचना को त्वरित और सही तरीके से पहुँचाना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए:

  • स्वास्थ्य क्षेत्र: चिकित्सा रिपोर्ट और रोगी निर्देशों में प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग किया जाता है, जहाँ जानकारी की सटीकता और स्पष्टता का महत्व होता है।
  • शिक्षा: शैक्षिक सामग्री और पाठ्यक्रम तैयार करने में प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग किया जाता है ताकि छात्रों को समझने में कोई कठिनाई न हो।

3. प्रयोजन पर आधारित भाषाशास्त्र:

प्रयोजनमूलक भाषा की संरचना उसके उपयोग के अनुसार विकसित होती है। इसमें निम्नलिखित विशेषताएँ होती हैं:

  • तकनीकी शब्दावली: प्रयोजनमूलक भाषा में विशेष तकनीकी शब्दावली का उपयोग किया जाता है जो संबंधित क्षेत्र के लिए विशिष्ट होती है। उदाहरण के लिए, मेडिकल भाषा में चिकित्सा शर्तें और औषधियों के नाम शामिल होते हैं।
  • मानकीकरण: प्रयोजनमूलक भाषा में मानकीकरण की आवश्यकता होती है ताकि दस्तावेज़, रिपोर्ट्स, और संचार मानक नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार हों।

4. प्रयोजन के अनुसार संचार:

प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग विभिन्न संदर्भों में संचार के लिए किया जाता है, जैसे:

  • प्रशासन: सरकारी दस्तावेज़ों और कानूनों में प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग किया जाता है ताकि नियम और विनियम स्पष्ट रूप से व्यक्त किए जा सकें।
  • विज्ञान और अनुसंधान: अनुसंधान पत्र और विज्ञान की रिपोर्टों में प्रयोजनमूलक भाषा का उपयोग किया जाता है ताकि अनुसंधान के निष्कर्ष सही तरीके से प्रस्तुत किए जा सकें।

5. संवाद की दक्षता:

प्रयोजनमूलक भाषा की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यह संवाद की दक्षता को बढ़ाती है। इसमें भाषा की संरचना और शैली इस प्रकार से होती है कि संवाद को तेजी से और प्रभावी ढंग से पूरा किया जा सके। उदाहरण के लिए:

  • आदेश और निर्देश: निर्देशात्मक भाषाएँ, जैसे उपयोगकर्ता मैनुअल्स और गाइड्स, प्रयोजनमूलक होती हैं और उपयोगकर्ताओं को सटीक जानकारी प्रदान करती हैं।

निष्कर्ष:

प्रयोजनमूलक भाषा का मुख्य तात्पर्य भाषा की उस भूमिका से है जो किसी विशेष उद्देश्य या कार्य को पूरा करने के लिए होती है। यह भाषा संप्रेषण की स्पष्टता, सटीकता, और कार्यक्षमता को बढ़ावा देती है, और विभिन्न क्षेत्रों जैसे विज्ञान, व्यापार, प्रशासन, और स्वास्थ्य में उपयोग की जाती है। यह भाषा की एक विशेषता है जो उसे व्यावसायिक, तकनीकी, और शैक्षिक संदर्भों में अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाती है।

4.) शब्दकोश से क्या अभिप्राय हैं ? शब्दकोश का सही उपयोग कैसे किया जाता हैं ? सोदाहरण समझाइए | 10

उत्तर: शब्दकोश का अभिप्राय और सही उपयोग

शब्दकोश (Dictionary) एक संदर्भ पुस्तक है जिसमें एक भाषा के शब्दों की सूची, उनके अर्थ, उच्चारण, व्याकरणिक जानकारी, और उपयोग की विधियाँ शामिल होती हैं। शब्दकोश का उद्देश्य किसी भी शब्द के सही अर्थ, प्रयोग, और उच्चारण को स्पष्ट करना होता है। यह भाषा के अध्ययन, लेखन, और संवाद में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शब्दकोश का अभिप्राय

शब्दकोश एक ऐसी पुस्तक या डिजिटल टूल है जो किसी भाषा के शब्दों को व्यवस्थित ढंग से सूचीबद्ध करता है। इसके मुख्य तत्व निम्नलिखित होते हैं:

  1. अर्थ: शब्दकोश में शब्दों के विभिन्न अर्थ दिए जाते हैं, जो शब्द की सामान्य और विशेष उपयोगों को स्पष्ट करते हैं।
  2. उच्चारण: सही उच्चारण के लिए शब्दकोश में अक्सर शब्दों का फोनेटिक (ध्वन्यात्मक) प्रतिनिधित्व होता है।
  3. व्याकरणिक जानकारी: इसमें शब्द के प्रकार (संज्ञा, क्रिया, विशेषण, आदि), उनके रूप (वचन, काल, लिंग), और उपयोग के नियम भी शामिल होते हैं।
  4. उपयोग: शब्दकोश में शब्दों के प्रयोग के उदाहरण दिए जाते हैं, जो उपयोग की संदर्भ स्थिति को स्पष्ट करते हैं।

शब्दकोश का सही उपयोग

शब्दकोश का सही उपयोग करने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:

  1. शब्द की खोज: जब किसी शब्द के अर्थ या प्रयोग के बारे में जानना हो, तो पहले उस शब्द को शब्दकोश में खोजें। सामान्यत: शब्दकोश शब्दों को अक्षरमाला की क्रम में व्यवस्थित करता है। उदाहरण के लिए, यदि आप “अवसर” शब्द का अर्थ जानना चाहते हैं, तो “अ” से शुरू होने वाले अनुभाग में इसे खोजें।
  2. अर्थ समझना: शब्दकोश में शब्द के सामने विभिन्न अर्थ हो सकते हैं। सही अर्थ को समझने के लिए पूरे विवरण को पढ़ें। उदाहरण के लिए, “अवसर” शब्द का एक अर्थ हो सकता है “सुअवसर” जबकि दूसरा अर्थ हो सकता है “समय या मौका”।
  3. उच्चारण देखना: अगर शब्द का सही उच्चारण जानना हो, तो शब्दकोश में दिया गया फोनेटिक संकेत पढ़ें। उदाहरण के लिए, “अवसर” शब्द का फोनेटिक उच्चारण /अवसər/ हो सकता है।
  4. व्याकरणिक जानकारी का उपयोग: शब्दकोश में शब्द के व्याकरणिक उपयोग जैसे लिंग, वचन, काल, और अन्य विशेषताओं को देखें। उदाहरण के लिए, “अवसर” एक संज्ञा है और इसका बहुवचन रूप “अवसर” ही रहता है।
  5. उपयोग के उदाहरण: शब्दकोश में दिए गए उदाहरण वाक्यों को पढ़ें ताकि आप शब्द का सही संदर्भ में उपयोग समझ सकें। उदाहरण के लिए, “उन्हें एक सुनहरा अवसर मिला” में “अवसर” शब्द का उपयोग एक संभावित मौका या स्थिति के रूप में किया गया है।

उदाहरण

  1. शब्द: प्रेरणा
  • अर्थ: किसी काम को करने के लिए उकसाना या प्रोत्साहन।
  • उच्चारण: /प्रेरणा/
  • व्याकरणिक जानकारी: संज्ञा (फेमिनिन)
  • उदाहरण: “उसकी मेहनत और लगन ने हमें प्रेरणा दी।”
  1. शब्द: स्मरण
  • अर्थ: याद करने की प्रक्रिया।
  • उच्चारण: /स्मरण/
  • व्याकरणिक जानकारी: संज्ञा (मास्कुलिन)
  • उदाहरण: “उसकी मेहनत और परिश्रम का स्मरण हमेशा रहेगा।”

निष्कर्ष

शब्दकोश एक अत्यंत उपयोगी संदर्भ उपकरण है जो किसी भाषा के शब्दों की जानकारी और सही उपयोग में सहायता करता है। इसके माध्यम से हम न केवल शब्दों के अर्थ और उच्चारण को समझ सकते हैं, बल्कि शब्दों के सही व्याकरणिक उपयोग और संदर्भ भी जान सकते हैं। सही तरीके से शब्दकोश का उपयोग करके आप भाषा की सटीकता को बनाए रख सकते हैं और अपने संवाद और लेखन में सुधार कर सकते हैं।

भाग – 02

5.) ‘परिवार ‘ शीर्षक के आधार पर निबंध लेखन की आधारभूत विशेषताओ को स्पष्ट कीजिए | 10

उत्तर :’परिवार’ शीर्षक के आधार पर निबंध लेखन की आधारभूत विशेषताएँ

‘परिवार’ एक ऐसा विषय है जो समाज और व्यक्तिगत जीवन की मौलिक संरचना को दर्शाता है। इस शीर्षक पर निबंध लिखते समय कुछ आधारभूत विशेषताओं को ध्यान में रखना आवश्यक है ताकि निबंध प्रभावी और सम्मोहक हो। यहाँ ‘परिवार’ विषय पर निबंध लेखन की आधारभूत विशेषताएँ विस्तृत रूप से प्रस्तुत की गई हैं:

1. निबंध की संरचना

i. प्रस्तावना (Introduction):

  • परिभाषा और महत्व: परिवार की परिभाषा और इसके समाज में महत्वपूर्ण भूमिका का वर्णन करें। यह एक बुनियादी ढाँचा है जिसमें परिवार के सदस्यों के बीच रिश्ते और उनकी भूमिकाओं का परिचय दिया जाता है।
  • वर्तमान परिदृश्य: आज के समय में परिवार की स्थिति पर प्रकाश डालें, जैसे बदलते परिवारिक ढाँचे, संयुक्त परिवार से लेकर एकल परिवार तक।

ii. मुख्य भाग (Body):

  • परिवार की संरचना (Structure): विभिन्न प्रकार के परिवारों का विवरण दें, जैसे परमाणु परिवार, विस्तारित परिवार, और एकल माता-पिता का परिवार। प्रत्येक प्रकार के परिवार की विशेषताएँ और उनके लाभ-हानियों का विश्लेषण करें।
  • परिवार के सदस्य और उनकी भूमिकाएँ (Roles of Family Members): परिवार के विभिन्न सदस्यों की भूमिकाओं और जिम्मेदारियों पर चर्चा करें। इसमें माता-पिता, बच्चे, दादा-दादी, और अन्य सदस्य शामिल हो सकते हैं।
  • परिवार का सामाजिक और भावनात्मक महत्व (Social and Emotional Importance): परिवार के सदस्यों के बीच भावनात्मक समर्थन, सुरक्षा, और सामाजिक शिक्षा के पहलुओं पर चर्चा करें। यह भी बताएं कि कैसे परिवार जीवन की समस्याओं और खुशियों का साझा करता है।
  • परिवार की चुनौतियाँ (Challenges): आधुनिक परिवारों को किस प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है, जैसे आर्थिक तनाव, सामाजिक बदलाव, और तकनीकी प्रभाव।

iii. निष्कर्ष (Conclusion):

  • सारांश: निबंध में वर्णित बिंदुओं का संक्षिप्त सारांश प्रस्तुत करें। परिवार के महत्व और इसके सामाजिक प्रभाव को पुनः स्पष्ट करें।
  • आगे की दिशा: भविष्य में परिवार संरचना में संभावित बदलावों और सुधारों के सुझाव दें। परिवार के महत्व को बनाए रखने और उसे मजबूत करने के उपाय सुझाएं।

2. लेखन की विशेषताएँ

i. स्पष्टता और सटीकता (Clarity and Precision):

  • निबंध को स्पष्ट और सटीक बनाए रखें। परिवार के विभिन्न पहलुओं को सरल और समझने योग्य भाषा में प्रस्तुत करें।

ii. संलग्नता (Engagement):

  • पाठक को विषय में रुचि बनाए रखने के लिए प्रभावी उदाहरण और व्यक्तिगत अनुभव शामिल करें। परिवार के सामाजिक और व्यक्तिगत महत्व को प्रभावी ढंग से उजागर करें।

iii. तथ्यात्मक जानकारी (Factual Information):

  • परिवार की संरचना, भूमिकाओं और समस्याओं पर आधारित तथ्यों और आंकड़ों का उपयोग करें। इन तथ्यों को विश्वसनीय स्रोतों से प्राप्त करें।

iv. संतुलित दृष्टिकोण (Balanced Perspective):

  • परिवार के सकारात्मक और नकारात्मक पहलुओं पर संतुलित दृष्टिकोण प्रस्तुत करें। विभिन्न प्रकार के परिवारों की विशेषताओं को समान महत्व दें।

v. भावनात्मक अपील (Emotional Appeal):

  • परिवार की भावनात्मक सच्चाई और इसके प्रभाव को समझाने के लिए भावनात्मक अपील का उपयोग करें। यह पाठक को अधिक जुड़ाव महसूस कराएगा।

3. उदाहरण और विवरण

  • संयुक्त परिवार: एक विस्तृत परिवार की संरचना जिसमें दादा-दादी, माता-पिता, बच्चे और कभी-कभी चाचा-चाची भी शामिल होते हैं। यह परिवार की सामूहिकता और सहयोग को दर्शाता है।
  • एकल परिवार: एक परिवार जिसमें केवल माता-पिता और उनके बच्चे शामिल होते हैं। इस प्रकार के परिवार में स्वतंत्रता और आत्मनिर्भरता की विशेषताएँ हो सकती हैं।
  • आधुनिक चुनौतियाँ: जैसे कार्य जीवन और पारिवारिक जीवन के बीच संतुलन, आर्थिक दबाव, और तकनीकी प्रभाव।

निष्कर्ष

‘परिवार’ विषय पर निबंध लेखन के लिए संरचना, स्पष्टता, तथ्यात्मक जानकारी, और भावनात्मक अपील की विशेषताएँ महत्वपूर्ण होती हैं। सही प्रकार से इस विषय को प्रस्तुत करने से पाठक को परिवार के महत्व और उसकी विभिन्न विशेषताओं को समझने में सहायता मिलती है। एक सुविचारित और संतुलित निबंध न केवल जानकारीपूर्ण होता है, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी प्रभावशाली होता है।

6.) पठित भाषण के आधार पर भाषण की शैलीगत विशेषताओ पर विचार कीजिए | 10

उत्तर : पठित भाषण की शैलीगत विशेषताएँ

पठित भाषण एक प्रकार का भाषण होता है जिसे तैयार कर के पढ़ा जाता है, न कि मौखिक रूप से अभिव्यक्त किया जाता है। पठित भाषण की शैलीगत विशेषताएँ उसे प्रभावी और सम्मोहक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। यहाँ पर इन विशेषताओं पर विस्तार से चर्चा की गई है:

1. स्पष्टता और संक्षिप्तता

स्पष्टता (Clarity):

  • पठित भाषण की प्रमुख विशेषता उसकी स्पष्टता होती है। भाषण को पढ़ते समय, वाक्यों को सीधा और समझने योग्य बनाना आवश्यक होता है। अस्पष्ट या जटिल भाषा से बचना चाहिए ताकि दर्शक या श्रोता आसानी से विचारों को समझ सके।
  • उदाहरण के लिए, यदि भाषण का उद्देश्य किसी नई नीति को समझाना है, तो जटिल शब्दावली और तकनीकी शर्तों का प्रयोग न्यूनतम करें और सरल भाषा का उपयोग करें।

संक्षिप्तता (Brevity):

  • पठित भाषण में संक्षिप्तता का विशेष ध्यान रखा जाता है। लंबे और अनावश्यक विवरणों से बचें। मुख्य बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत करें ताकि भाषण प्रभावी और समय पर हो।
  • उदाहरण के लिए, जब किसी योजना के लाभों को बताया जाता है, तो प्रमुख लाभों को संक्षेप में सूचीबद्ध करें और विस्तृत चर्चा के लिए समय सीमित करें।

2. संरचना और संगठन

संगठन (Organization):

  • पठित भाषण की संरचना में एक स्पष्ट और व्यवस्थित ढाँचा होना चाहिए। सामान्यत: इसमें प्रस्तावना, मुख्य भाग और निष्कर्ष होते हैं।
  • प्रस्तावना में विषय का परिचय और उद्देश्य स्पष्ट करें। मुख्य भाग में विचारों को क्रमबद्ध तरीके से प्रस्तुत करें, और निष्कर्ष में संक्षेप में विचारों को दोहराएं और संभावित कार्यवाही की दिशा सुझाएं।

उदाहरण:

  • प्रस्तावना: विषय की शुरुआत, मुख्य मुद्दा और उसके महत्व का परिचय।
  • मुख्य भाग: विभिन्न बिंदुओं की क्रमिक प्रस्तुति, तथ्यों और आंकड़ों के साथ समर्थन।
  • निष्कर्ष: विचारों का सारांश, प्रमुख निष्कर्ष और अंत में एक प्रभावी निष्कर्ष।

3. भाषा और शैली

भाषा (Language):

  • पठित भाषण में भाषा का चयन विचारशील और उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए। श्रोता की समझ के अनुसार भाषा का स्तर तय करें और अनावश्यक तकनीकी शब्दावली से बचें।
  • उदाहरण के लिए, एक आम दर्शक के लिए, सामान्य और सुगम भाषा का उपयोग करें, जबकि एक पेशेवर सम्मेलन में तकनीकी और विशिष्ट शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है।

शैली (Style):

  • भाषण की शैली स्पष्ट और संवादात्मक होनी चाहिए, भले ही वह पठित हो। एक औपचारिक या अनौपचारिक शैली का चयन विषय और श्रोताओं के आधार पर किया जाता है।
  • उदाहरण के लिए, एक औपचारिक व्याख्यान में गंभीर और विनम्र शैली का उपयोग किया जाता है, जबकि एक प्रेरणादायक भाषण में उत्साही और प्रेरक शैली अपनाई जाती है।

4. दृष्टिकोण और भावनात्मक अपील

दृष्टिकोण (Perspective):

  • पठित भाषण में विचारों का दृष्टिकोण एक सुसंगत और विचारशील ढंग से प्रस्तुत किया जाना चाहिए। विचारों और तर्कों को तर्कसंगत ढंग से व्यवस्थित करें और प्रमाणों के साथ समर्थन करें।
  • उदाहरण के लिए, यदि आप पर्यावरण संरक्षण पर भाषण दे रहे हैं, तो वैज्ञानिक अनुसंधान और तथ्यों के आधार पर अपने तर्क प्रस्तुत करें।

भावनात्मक अपील (Emotional Appeal):

  • पठित भाषण में भावनात्मक अपील भी महत्वपूर्ण होती है। श्रोताओं की भावनाओं को जोड़ने के लिए वास्तविक उदाहरणों, व्यक्तिगत कहानियों, और प्रेरणादायक विचारों का उपयोग करें।
  • उदाहरण के लिए, किसी सामाजिक मुद्दे पर भाषण करते समय वास्तविक घटनाओं या अनुभवों को साझा करें जो भावनात्मक जुड़ाव को बढ़ाते हैं।

5. अनुशासन और तैयारी

अनुशासन (Discipline):

  • पठित भाषण की सफलता के लिए अनुशासन आवश्यक है। भाषा की संरचना, शैली, और सामग्री पर ध्यान दें और सुनिश्चित करें कि भाषण समय पर पूरा हो।
  • उदाहरण के लिए, भाषण की अवधि को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक खंड का समय निर्धारित करें और अभ्यास के माध्यम से इसे सटीक बनाएं।

तैयारी (Preparation):

  • भाषण के लिए पूरी तैयारी करें, जिसमें भाषण के पाठ को बार-बार पढ़ना और उसका अभ्यास करना शामिल है। भाषण के मुख्य बिंदुओं को अच्छी तरह से समझें और महत्वपूर्ण अंशों को सही तरीके से प्रस्तुत करें।

निष्कर्ष

पठित भाषण की शैलीगत विशेषताएँ उसकी प्रभावशीलता और प्रभाव को निर्धारित करती हैं। स्पष्टता, संक्षिप्तता, संरचना, भाषा और शैली, दृष्टिकोण, भावनात्मक अपील, अनुशासन, और तैयारी सभी महत्वपूर्ण तत्व हैं जो एक पठित भाषण को सफल बनाते हैं। इन विशेषताओं को समझकर और अपनाकर, आप एक प्रभावी और प्रेरणादायक पठित भाषण तैयार कर सकते हैं जो आपके श्रोताओं पर सकारात्मक प्रभाव डाल सके।

7.) सामाजिक विज्ञान ( इतिहास के सन्दर्भ में ) से संबंधितवर्तनी के नियमो पर प्रकाश डालिए | 10

उत्तर : सामाजिक विज्ञान (इतिहास के संदर्भ में) से संबंधित वर्तनी के नियम

इतिहास, सामाजिक विज्ञान का एक महत्वपूर्ण अंग है, जो अतीत की घटनाओं, संस्कृतियों, और सभ्यताओं का अध्ययन करता है। वर्तनी, किसी भी भाषा में शब्दों की सही लिखावट का नियम है। सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में, विशेषकर इतिहास के संदर्भ में, वर्तनी के नियम महत्वपूर्ण होते हैं क्योंकि वे पाठों की स्पष्टता, सटीकता, और एकरूपता सुनिश्चित करते हैं। इस लेख में, हम इतिहास के संदर्भ में वर्तनी के नियमों पर प्रकाश डालेंगे।

1. ऐतिहासिक नामों और स्थानों की वर्तनी

i. ऐतिहासिक व्यक्तित्व:

  • ऐतिहासिक व्यक्तियों के नामों की वर्तनी एकरूपता में होना चाहिए। जैसे, “अकबर” और “अशोक” की वर्तनी को मानक रूप में लिखना आवश्यक है। कोई भी अंतर न उत्पन्न हो, इसलिए ऐतिहासिक नामों को सही तरीके से लिखा जाना चाहिए।

ii. स्थानों के नाम:

  • ऐतिहासिक स्थानों के नामों की वर्तनी भी एकरूपता के साथ होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, “पाटलिपुत्र”, “महाजनपद”, और “मौर्य” जैसे नामों की वर्तनी में कोई भिन्नता नहीं होनी चाहिए। इसे मानक रूप में लिखना जरूरी है ताकि पाठकों को सही जानकारी प्राप्त हो सके।

2. ऐतिहासिक अवधियों और घटनाओं की वर्तनी

i. समय अवधियाँ:

  • ऐतिहासिक समय अवधियों की वर्तनी मानक और नियमित होनी चाहिए। जैसे, “मौर्य काल”, “गुप्त काल”, “मुगल साम्राज्य” आदि को सही वर्तनी में लिखा जाना चाहिए।

ii. ऐतिहासिक घटनाएँ:

  • महत्वपूर्ण ऐतिहासिक घटनाओं के नाम जैसे “बलिदान दिवस”, “स्वतंत्रता संग्राम”, और “पहली विश्व युद्ध” को सही और एकरूप वर्तनी में प्रस्तुत करना चाहिए। इससे पाठकों को स्पष्टता मिलती है और जानकारी सटीक रहती है।

3. ऐतिहासिक शब्दावली और तकनीकी शब्द

i. विशेष शब्दावली:

  • इतिहास में उपयोग की जाने वाली विशेष शब्दावली जैसे “सम्राट”, “राज्यव्यवस्था”, “संग्रहालय” आदि की वर्तनी सही और मानक रूप में होनी चाहिए। यह सुनिश्चित करता है कि शब्दों का अर्थ और संदर्भ ठीक से प्रकट हो।

ii. तकनीकी शब्द:

  • ऐतिहासिक शोध और अनुसंधान में प्रयुक्त तकनीकी शब्दों की वर्तनी एकरूपता में होनी चाहिए। उदाहरण के लिए, “आर्कियोलॉजी” (पुरातत्व) और “पैलाेनेटोलॉजी” (जीवाश्म विज्ञान) को सही वर्तनी में लिखा जाना चाहिए।

4. भाषा के मानक नियम और एकरूपता

i. मानक वर्तनी के नियम:

  • भारत की विभिन्न भाषाओं में ऐतिहासिक शब्दों और नामों की मानक वर्तनी को मान्यता देना चाहिए। जैसे हिंदी और संस्कृत में ऐतिहासिक नामों की वर्तनी समान होनी चाहिए।

ii. एकरूपता और निरंतरता:

  • ऐतिहासिक लेखन में वर्तनी की एकरूपता और निरंतरता बनाए रखना आवश्यक है। उदाहरण के लिए, एक ही लेख में “मौर्य साम्राज्य” और “मौर्य साम्राज्य” की वर्तनी में कोई भिन्नता नहीं होनी चाहिए।

5. शुद्धता और त्रुटियाँ

i. शुद्ध वर्तनी:

  • ऐतिहासिक लेखन में शुद्ध वर्तनी का ध्यान रखना चाहिए। वर्तनी की त्रुटियाँ ऐतिहासिक तथ्यों की समझ को प्रभावित कर सकती हैं। उदाहरण के लिए, “गांधी” और “गांधीजी” की सही वर्तनी का उपयोग सुनिश्चित करें।

ii. त्रुटियों की पहचान और सुधार:

  • ऐतिहासिक दस्तावेज़ और लेखों में वर्तनी की त्रुटियों की पहचान करना और उन्हें सुधारना आवश्यक है। त्रुटियाँ ऐतिहासिक तथ्य को गलत तरीके से प्रस्तुत कर सकती हैं।

निष्कर्ष

इतिहास के संदर्भ में वर्तनी के नियम ऐतिहासिक नामों, घटनाओं, अवधियों, और शब्दावली की सही और एकरूप प्रस्तुति को सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन नियमों का पालन करके हम ऐतिहासिक लेखन की स्पष्टता और सटीकता को बनाए रख सकते हैं, जिससे पाठकों को सही और सटीक जानकारी प्राप्त होती है। सही वर्तनी से ऐतिहासिक तथ्यों की समझ में सुधार होता है और भाषा की सुंदरता और सटीकता बनी रहती है।

8.) राजनीती विज्ञान के पाठ को समझने के लिए ‘शब्द रचना ‘ किन व्याकरणिक नियमों का अध्ययन करना आवश्यक हैं ? समझाइए | 10

उत्तर : राजनीति विज्ञान के पाठ को समझने के लिए ‘शब्द रचना’ (Morphology) के व्याकरणिक नियमों का अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है। शब्द रचना भाषा के शब्दों की संरचना और उनके घटकों के अध्ययन से संबंधित है। यह व्याकरण की एक शाखा है जो शब्दों के निर्माण, रूपांतरण, और उनके प्रयोग के नियमों को समझाती है। राजनीति विज्ञान में जटिल अवधारणाओं और तकनीकी शब्दावली को सही से समझने के लिए शब्द रचना के निम्नलिखित व्याकरणिक नियमों का अध्ययन आवश्यक है:

1. शब्दों की संरचना और घटक

i. मूल शब्द (Root Words):

  • मूल शब्द वह आधारभूत शब्द होते हैं जिनसे अन्य शब्द बनते हैं। राजनीति विज्ञान में, जैसे ‘लोकतंत्र’, ‘सत्ता’, और ‘संविधान’ जैसे शब्दों के मूल तत्व को समझना महत्वपूर्ण होता है।

ii. प्रत्यय और उपसर्ग (Suffixes and Prefixes):

  • प्रत्यय और उपसर्ग शब्दों के अर्थ और उपयोग को बदलते हैं। जैसे, ‘लोकतंत्र’ में ‘लोक’ और ‘तंत्र’ के जोड़ से ‘लोकतंत्र’ शब्द बनता है। राजनीति विज्ञान में ऐसे शब्दों का विश्लेषण करना आवश्यक है ताकि उनके विभिन्न रूपों को समझा जा सके।

2. शब्द रूपांतरण और विधियाँ

i. रूपांतरण (Derivation):

  • रूपांतरण से नए शब्द बनाए जाते हैं। उदाहरण के लिए, ‘प्रजातंत्र’ शब्द से ‘प्रजातांत्रिक’ और ‘प्रजातांत्रिकता’ शब्द बनते हैं। राजनीति विज्ञान के विशेष शब्दों के विभिन्न रूपों को समझना इन रूपांतरण विधियों को जानने से संभव होता है।

ii. संघटन (Composition):

  • संघटन दो या दो से अधिक शब्दों को जोड़कर नया शब्द बनाता है। जैसे ‘संविधानिक’ (संविधान + इक)। इस प्रकार के संघटन को समझकर, आप राजनीति विज्ञान के शब्दों की सही परिभाषाएँ और उपयोग जान सकते हैं।

3. व्याकरणिक श्रेणियाँ और उनके नियम

i. संज्ञा (Nouns):

  • राजनीति विज्ञान में संज्ञाओं जैसे ‘संसद’, ‘सरकार’, और ‘जनता’ के प्रकार और उनके लिंग (मास्कुलिन या फेमिनिन), वचन (एकवचन या बहुवचन) को समझना महत्वपूर्ण होता है।

ii. क्रिया (Verbs):

  • क्रियाओं के रूपांतरण और उनके काल (भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल) को जानना आवश्यक है। जैसे, ‘वोट देना’, ‘निर्वाचित होना’, और ‘संसद चलाना’ जैसी क्रियाओं का सही प्रयोग समझने के लिए क्रियाओं के नियमों का अध्ययन करें।

iii. विशेषण और विशेषण-विभक्ति (Adjectives and Adjective Constructions):

  • विशेषण शब्दों के गुण और विशेषताएँ बताते हैं। जैसे ‘लोकतांत्रिक सरकार’ और ‘सशक्त संसद’ में विशेषण का उपयोग राजनीति विज्ञान के पाठों को समझने में सहायक होता है।

4. अर्थ और प्रयोग

i. शब्दार्थ (Semantics):

  • शब्दों के अर्थ को समझना राजनीति विज्ञान में शब्दों की सही व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण है। जैसे ‘संविधान’ और ‘कानून’ के बीच का अंतर समझना आवश्यक होता है।

ii. वाक्य रचना (Sentence Construction):

  • वाक्य की संरचना और शब्दों का सही स्थान भी समझना आवश्यक है। राजनीति विज्ञान के जटिल वाक्यों को सही से समझने के लिए यह महत्वपूर्ण होता है।

5. व्याकरणिक संबंध और प्रयोग

i. संयोजक (Conjunctions):

  • राजनीति विज्ञान में, ‘और’, ‘या’, ‘परंतु’ जैसे संयोजकों का सही प्रयोग करना आवश्यक होता है ताकि वाक्य की प्रवाहिता और अर्थ स्पष्ट हो सके।

ii. उपसर्ग और प्रत्यय के नियम:

  • उपसर्ग (जैसे ‘अ-अधिकार’, ‘अ-राजनीतिक’) और प्रत्यय (जैसे ‘धर्म-निरपेक्ष’, ‘लोक-तंत्र’) के उपयोग और उनके प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष

राजनीति विज्ञान के पाठ को पूरी तरह से समझने के लिए शब्द रचना के व्याकरणिक नियमों का अध्ययन करना अत्यंत आवश्यक है। शब्दों की संरचना, रूपांतरण विधियाँ, व्याकरणिक श्रेणियाँ, अर्थ और प्रयोग के नियम राजनीति विज्ञान की जटिल अवधारणाओं को स्पष्ट रूप से समझने में सहायता करते हैं। इन नियमों का अध्ययन करके आप राजनीति विज्ञान की शब्दावली को सही तरीके से समझ सकते हैं और उनके प्रयोग को बेहतर ढंग से कर सकते हैं।

भाग – 3

9.) निम्नलिखित पर टिपण्णी लिखिए |
(क) सूचना प्रोधोगिकी और हिंदी भाषा
(ख) राष्ट्रभाषा
(ग) राजभाषा
(घ ) संपर्क भाषा

उत्तर : (क) सूचना प्रौद्योगिकी और हिंदी भाषा

सूचना प्रौद्योगिकी (IT) और हिंदी भाषा का संबंध अत्यंत महत्वपूर्ण है, विशेषकर डिजिटल युग में। सूचना प्रौद्योगिकी ने हिंदी भाषा के प्रसार और विकास को नए आयाम प्रदान किए हैं। इंटरनेट, सोशल मीडिया, और अन्य डिजिटल प्लेटफॉर्मों पर हिंदी भाषा का उपयोग बढ़ा है, जिससे हिंदी बोलने वाले लोगों के बीच संवाद सरल और सुलभ हुआ है। हिंदी में वेबसाइटें, मोबाइल एप्लिकेशन, और सॉफ़्टवेयर का निर्माण भी तेजी से हो रहा है, जिससे भाषा का डिजिटल प्रतिनिधित्व सशक्त हुआ है। हालांकि, हिंदी भाषा के सही उपयोग और प्रौद्योगिकी के बीच भाषा की अनुकूलता को सुनिश्चित करने के लिए निरंतर प्रयास की आवश्यकता है। उदाहरण स्वरूप, Unicode मानकों का पालन और सही कीबोर्ड लेआउट्स की उपलब्धता हिंदी भाषा के डिजिटल उपयोग को सुविधाजनक बनाते हैं।

(ख) राष्ट्रभाषा

राष्ट्रभाषा एक ऐसी भाषा होती है जो एक देश के नागरिकों के बीच एकता और सांस्कृतिक पहचान को प्रोत्साहित करती है। भारत में, हिंदी को राष्ट्रभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है, जिसका मतलब है कि यह देश के विभिन्न हिस्सों के लोगों के बीच संवाद और एकता का एक प्रमुख साधन है। राष्ट्रभाषा का उद्देश्य समाज के विभिन्न वर्गों और संस्कृतियों को जोड़ना है, और यह राष्ट्र की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को समेटे हुए एक साझा भाषा का कार्य करती है।

(ग) राजभाषा

राजभाषा वह भाषा है जिसका उपयोग सरकारी कार्यों और प्रशासनिक उद्देश्यों के लिए किया जाता है। भारत में, हिंदी और अंग्रेजी दोनों को राजभाषा के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिंदी का उपयोग केंद्रीय सरकार के दफ्तरों में और कई राज्यों में आधिकारिक कार्यों के लिए किया जाता है, जबकि अंग्रेजी का उपयोग आधिकारिक और न्यायिक कार्यों में किया जाता है। राजभाषा की भूमिका यह सुनिश्चित करना है कि सरकारी दस्तावेज और सेवाएँ आम जनता के लिए सुलभ हों और विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों को सरकार से जोड़ा जा सके।

(घ) संपर्क भाषा

संपर्क भाषा वह भाषा होती है जिसका उपयोग विभिन्न भाषाई पृष्ठभूमियों वाले लोगों के बीच संवाद स्थापित करने के लिए किया जाता है। भारत में, हिंदी को एक महत्वपूर्ण संपर्क भाषा के रूप में देखा जाता है, क्योंकि यह देश के विभिन्न हिस्सों में बोली जाती है और विभिन्न भाषी लोगों के बीच संवाद को सरल बनाती है। संपर्क भाषा का उद्देश्य यह है कि विभिन्न भाषिक समूह आसानी से एक-दूसरे से संवाद कर सकें और समझदारी बढ़ा सकें। हिंदी की व्यापकता और उपयोग इसे एक प्रभावी संपर्क भाषा बनाते हैं, जो भारत की भाषाई विविधता में एकता और समन्वय को बढ़ावा देती है।

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